26/11 हमलों के दौरान ताज होटल के एक कर्मचारी राजन काम्बले की जान चली गयी। उनके जाने के बाद उनकी पत्नी श्रुति और दोनों बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। श्रुति की खबर जब अख़बार में छपी तो अभिनेता फ़ारूक शेख़ ने उनके परिवार का जिम्मा उठाते हुए बिना अपनी पहचान बताये उनकी मदद की।

26/11 मुंबई हमला जहाँ देश में एक काले दिन के तौर पर याद किया जाता है वहीं इस दुखद घटना के बाद ऐसी बहुत-सी कहानियाँ उभर कर सामने आई, जिन्होंने  इंसानियत में हमारा विश्वास एक बार फिर मज़बूत कर दिया। जाने-माने बॉलीवुड कलाकार फ़ारूक़ शेख़ (Farooq Shaikh) की कहानी भी इन्हीं में से एक है।

‘कथा’, ‘चश्मे बद्दूर’, ‘लिसन अमाया’ और ‘लाहौर’ जैसी फ़िल्मों में काम कर चुके फ़ारूक़ शेख़ (Farooq Shaikh) का 28 दिसंबर 2013 को उनका निधन हो गया था।

उनकी मृत्यु के कुछ दिन बाद ही, 26/11 के ताज हमले में अपने पति को खो देने वाली श्रुति कांबले ने उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की और कहा, “मुझे हमेशा यह अफ़सोस रहेगा कि मैं उन्हें शुक्रिया तक ना कह पाई!”

बात दिसंबर 2008 की है, जब द इंडियन एक्सप्रेस को अभिनेता फ़ारूक शेख़ ने सम्पर्क किया और उनके द्वारा छापी गयी एक ख़बर के बारे में पूछा। यह ख़बर श्रुति और उनके दो बेटों के बारे में थी। श्रुति के पति राजन कांबले, ताज होटल के मेंटेनेंस विभाग में काम करते थे। प्रकाशन ने एक पूरी ख़बर छापी थी, कि कैसे राजन होटल में मेहमानों की जान बचाते हुए मारे गये और अब उनके बाद उनकी पत्नी और दो छोटे बच्चों का ख्याल रखने वाला कोई नहीं है।

इस ख़बर ने फ़ारूक़ साहब को बहुत प्रभावित किया और उन्होंने राजन के दोनों बेटों की पढ़ाई का खर्च उठाने का फ़ैसला किया। पर उनकी एक शर्त थी, कि कभी भी इस परिवार को यह न बताया जाये कि उनकी मदद करने वाला इंसान कौन है।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह प्रकाशन हर साल स्कूल शुरू होने से पहले फ़ारूक़ साहब को इन बच्चों के लिए लगने वाले उस साल की पढ़ाई के खर्च की तफ़सील से जानकारी देता और वे तुरंत कांबले परिवार के लिए चेक दे देते। उन्होंने कभी नहीं पूछा कि पैसे कैसे इस्तेमाल हुए।

श्रुति कहती हैं, “ताज मैनेजमेंट ने हमेशा हमारा ख्याल रखा, लेकिन अगर फ़ारूक़ साहब न होते तो शायद मेरे बच्चे इतना आगे बढ़ पाने के बारे में कभी नहीं सोच पाते। आज मैं अपने बच्चों को बता सकती हूँ, कि यही वह बेनाम शख्स हैं, जिन्होंने हमारा साथ तब दिया, जब हमारे अपनों ने हमें ठुकरा दिया था।”

पाँच सालों तक श्रुति और उनके बच्चों को पता भी नहीं था कि उनकी मदद करने वाला नेक इंसान कौन था और जब उन्हें पता चला, तो वे उनका धन्यवाद भी नहीं कर पाए।

श्रुति का छोटा बेटा – अथर्व, आज अपनी क्लास के सबसे अच्छे छात्रों में से एक है और बड़ा बेटा – रोहन, एक दिन अपने पिता की तरह ताज होटल में काम करना चाहता है। हम आशा करते हैं कि श्रुति के दोनों बच्चे अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ें!

फ़ारुक़ साहब की ये नेकदिली उनके जाने के बाद में हर किसी के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी रहेगी!

मूल लेख: विद्या राजा

संपादन – मानबी कटोच

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